موج دریا زده را تنگهی ساحل قفس است
ماهی تُنگ نباشد، دل طوفانی ما
عاقلان پا مگذارید به میخانه عشق
داغ صد مُهر جنون خورده به پیشانی ما
ترمه و اطلس و دیبا همگی مال شما
خرقهای نیست برازندهی عریانی ما
زلف ما چون خم زنجیر گره در گره است
شانه رَم میکند از فرط پریشانی ما
علاقمند به ورزش
و شنیدن
مطالب فلسفی ، روانشناسی ، سیاسی و تاریخی
Invited by: Peyman Rostamzadeh
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Day | Followers | Gain | % Gain |
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July 21, 2023 | 58 | +1 | +1.8% |
October 19, 2022 | 57 | +1 | +1.8% |
August 20, 2022 | 56 | -1 | -1.8% |
July 14, 2022 | 57 | +1 | +1.8% |
June 07, 2022 | 56 | -1 | -1.8% |
April 30, 2022 | 57 | +3 | +5.6% |
March 23, 2022 | 54 | +3 | +5.9% |
January 25, 2022 | 51 | +4 | +8.6% |
December 18, 2021 | 47 | +1 | +2.2% |
November 10, 2021 | 46 | +4 | +9.6% |