उसकी ज़ुल्फ़ें जो बिखरें ग़र हर शाम अँधेरा हो जाए
उसके रुख़ की शबनम चखने हर चाँद सवेरा हो जाए
हर वक़्त छलकता जाम निगाहें होश के अब हालात कहाँ
उसकी नज़रों से टक्कर ले मयख़ाने की औक़ात कहाँ
दो स्याह कन्हैया जैसी आँखें चञ्चल पलकें राधा हैं
मैं उसको चाँद कहूँ कैसे कुछ दाग़ चाँद में ज़्यादा हैं
To be continued.........
© - Swatantra (Qasid)
Kanpur & Azamgarh
IG- swatantra63
6'2
We defend the Indian Sky.
An amateur poet.
Can sing a bit.
A lot of interest in gaming.
I do play BGMI with 6 finger claw and gyro.
मेरे सीने-काँधे तेरा सर जाना
मुश्किल जैसे क़ाज़ी का मन्दर जाना
ख़ाब भरम उम्मीद भरी इन आँखों से
पड़ जाता है आँसू को बाहर जाना
हमको क्या मालूम कमा करके सब कुछ
इतना मुश्किल होगा फिर से घर जाना
किसने लाज रखी औरत के आँचल में
किसने घर को घर का बस बिस्तर जाना
ख़र्च किया दफ़नाया ख़ुद को कागज़ पर
जिसने क़ब्र पढ़ी उसने शायर जाना
'क़ासिद' ख़ाब जुटाना सारे गमछी पर
पीठ पे गठरी लाद वजन से मर जाना
©- Swatantra (Qasid)