व्यथित करे जो कवि हृदय को वहीं शब्द मै लिख पाता हूँ,
मन के भावों को कागद पर लिखता हूँ फिर दिखलाता हूँ।
देखता हूँ मैं जिधर भी, कोलाहल अरु क्रन्दन है।
मानवता पग धूलि लेटी, दानवता का वंदन है।।
#सचिन
वो अमर , कवि की कलम से
जागे चाहे अब न सोकर
मौत थोड़ा हँस भी लेती
किन्तु मिलता जन्म रोकर ।
#अज्ञात
https://youtu.be/EOnvslckQ40
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