خسته ام من*خسته از تکرارها
مضطرب در پشت این دیوارها
حسرت گل مانده در چشمان من
مانده ام در گیر و دار خارها
خنجر نامردی و نامردمی
کرده عریان سینه ام را بارها
آدمکها... خویش را گم کرده اند
( در لباس مور و نیش مارها)
کاش پیک مرگم از ره میرسید
سخت دلتنگم از این تکرارها
if the data has not been changed, no new rows will appear.
Day | Followers | Gain | % Gain |
---|---|---|---|
June 17, 2024 | 1,116 | +3 | +0.3% |
May 15, 2024 | 1,113 | +3 | +0.3% |
February 17, 2024 | 1,110 | +1 | +0.1% |
January 30, 2024 | 1,109 | +3 | +0.3% |
January 13, 2024 | 1,106 | +2 | +0.2% |
December 12, 2023 | 1,104 | +1 | +0.1% |
November 28, 2023 | 1,103 | +1 | +0.1% |
November 04, 2023 | 1,102 | +2 | +0.2% |
October 26, 2023 | 1,100 | +4 | +0.4% |
October 18, 2023 | 1,096 | -1 | -0.1% |