دست من غیر عبایِ تو، عبایی نگرفت
پَرِ من جز درِ این خانه، به جایی نگرفت
ما جگرسوختگان فُطرس این طایفهایم
آهِ ما بی دَمِ تو بال رهایی نگرفت
دستِ حسرت به سرش تا به ابد خواهد زد
هر که پیشِ کَرَمَت ظرف گدایی نگرفت
اصلِ توحید، همین مَجلسِ گریاندن ماست
فقهِ بی روضهی تو، رنگ خدایی نگرفت!
«مادرت» جامهی مشکی به تنم کرد حسین
نوکرِ تو سَرِخود رختِ عزایی نگرفت
Invited by: Mina Sh
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Day | Followers | Gain | % Gain |
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August 29, 2022 | 108 | -1 | -1.0% |
June 16, 2022 | 109 | -4 | -3.6% |
May 10, 2022 | 113 | -2 | -1.8% |
April 01, 2022 | 115 | -1 | -0.9% |
December 27, 2021 | 116 | +2 | +1.8% |
October 11, 2021 | 114 | +3 | +2.8% |
September 02, 2021 | 111 | +15 | +15.7% |