بنگر ز جهان چه طَرْف بربستم؟ هیچ،
وَز حاصلِ عمر چیست در دستم؟ هیچ،
شمعِ طَرَبم، ولی چو بنشستم، هیچ،
من جامِ جَمَم، ولی چو بشکستم، هیچ.
خیام
څو په باغ کې لا يو ګل د نوبهار شته
د بلبلو، د توتيانو پرې چغار شته
نن دې غم له مانه ځان ساتي که ښه کا
چې په سيل د بهار راسره يار شته
چې له ياره سره مست، د ګلو ګشت کړم
محتسب که رانژدې شي پيزار شته
شيخ ملا دې زما غم په بهار نه خوري
چې رباب او سريندې غوندې غمخوار شته
خوشحال خټک
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