दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं
~ग़ालिब
मैं तो कुछ नहीं, एक मुश्त-ए-गुबार हूं बस
या तो साहिल - ए - दरिया में मिलूं
या हस्ती मेरी, गिरफ्त - ए- साया - ए - दीवार ही रहनी है
Guitarist🎸|Software engineer 👨💻
📍मेरठ
Invited by: Jayesh Majumdar
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