ग़ज़ल
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ये कैसे कह दिया वो अजनबी होगी
तुम्हें कोई ग़लत-फ़हमी हुई होगी
बहार आई है मौसम में यका-यक जो
वो आईने में ख़ुद को देखती होगी
हमारे ख़्वाब जागें हैं मगर ये रात
अकेले रोते रोते सो गयी होगी
मिलेंगे आसमाँ के तह में हम दोनो
वहाँ मैं उस का और वो बस मिरी होगी
तुम्हारी याद आएगी यकीनन तब
हमें जब भी मुहब्बत दूसरी होगी
हमारी सारी ग़ज़लें छोड़ जाएँगे
हमारे आंसुओं से रौशनी होगी
सितारों की तरह जो भी चमकते हैं
उन्ही की आँखों में शब शबनमी होगी
तुम आना चाहती हो ठीक है लेकिन
मेरे दिल के कोने में वो भी होगी
ज़मीं के फूल सारे बे-वफ़ा निकलें
हमारी बादलों से दोस्ती होगी
ये ख़ुश-फ़हमी में रहने दीजिए मुझ को
की मुझ को आज भी वो चाहती होगी
जिस इक अलमारी में यादें रखा मैं ने
उसी में नींद भी मेरी रखी होगी
Raj Tiwari 'Azlan'
Invited by: Nikhil Pansari
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