|| SIRI ||
आपको मैंने निगाहों में बसा रखा है ,
आईना छोड़िए आईने में क्या रखा है ।
छोड़िए दर से मशावाद में क्या रखा है ,
हर बड़े शख़्स ने छोटे को दबा रखा है ।
जिसके साये में कई वादे किए थे तुमने,
मैंने उस पेड़ की शाखों को हरा रखा है।
तेरे बीमार-ए-मुहोब्बत ने दमे आख़िर भी,
तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है।
ज़िंदा रहने को उसे मेरी ज़रूरत है बहुत,
सोच कर उसने मेरा नाम हवा रखा है।
जाने कब लौट के आ जाए बिछड़ने वाला,
इसी उम्मीद में दरवाज़ा खुला रखा है ॥
Invited by: Prateek Prakash
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