हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबौरी कनक-कटोरी की मैदा से।
स्वर्ण-शृंखला के बंधन में अपनी गति उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं तरु की फुनगी पर के झूले।
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Day | Followers | Gain | % Gain |
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January 21, 2024 | 18 | 0 | 0.0% |
June 22, 2022 | 18 | -3 | -14.3% |
November 25, 2021 | 21 | +1 | +5.0% |
September 10, 2021 | 20 | +14 | +233.4% |