लिखा-लिखी की है नहीं,
देखा-देखी बात।
क्या लिखूं मैं अपने बारे में
एक अनसुलझी पहेली सा हूं,
पढ़ तो लेते हैं लोग चेहरा
मगर समझ नहीं पाते।
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