मैंने उसे नहीं देखा
ना ही छुआ,
मगर ढूंदने की कोशिश ज़रूर की है
और उसकी हस्ती मुझे कहा नहीं मिली
कहीं किसी सूफी की आवाज़ में
तो कहीं नए जमते बच्चे के आंसुओ में,
कहीं किसी भिकारी की आह में
तो कहीं रोटी की आस दिखे दो आंखो में,
कहीं कबीर के दोहों में
तो कहीं मीरा की बजती घुंगरू में
कभी किसी सजदे में झुके बरसते नैन में
तो कहीं किसी टूटे मजनू के दिल में
कहीं बारिश में झूमते पत्तों में
तो कहीं हथेली पर पिघलते बर्फ के टुकड़े में
मुझे मिले तो वो आज भी नहीं
पर हरलीन ज़रूर कर दिया...
© जुगनी
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I write and after having written I'll be free
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