शायर ए बेनवा के सीने पर।
शेर उतरते हैं आयतों की तरह।
मैं ने ये जब सुना तो मेरा दिल दहल गया
सूरज का जिस्म आग की लपटों से जल गया
ख़ून में लतपत पड़ी थी डूबते सूरज की लाश
और समंदर के किनारे पर उदासी छाई थी
मैं आईना हूँ मगर पत्थरों से कह देना
इक आईना है जो पत्थर पहन के निकला है
ग़ैर मुमकिन है मुझे कोई बला छू जाए
माँ के हाथों ने मेरे सर पे दुआ रक्खी है
हर एक लम्हा अंधेरों की जान जलती है
किसी चराग़ से जब रौशनी निकलती है
बादलों के शहर की हर इक गली को है ख़बर
धूप की गोरी हथेली चूम कर आया हूँ मैं
मेरी हर एक बात झूठी थी
बस यही मेरा आख़री सच है
कोई तरकीब नई सोच अगर जिना है
साँस ही लेता रहेगा तो तू मर जाएगा
जिस्म की भूख मिटाने की तलब होती है
दूसरी बार मोहब्बत नहीं करता कोई
यही सबब है के डरती हैं आँधियाँ मुझ से
मैं वो चराग़ हूँ जिसने हवा जला दी थी
मोहसिन आफ़ताब
Invited by: Liaqat Jafri
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