तलवार,धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र मे खड़े हुये
रक्त पिपासू महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुये
कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे
एक तरफ थे योद्धा सब ,एक तरफ समय के मारे थे
महा समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी
और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी
रणभुमि के सभी नजारे देखन मे कुछ खास लगे
माधव ने अर्जुन को देखा,अर्जुन उन्हे उदास लगे
कुरुक्षेत्र का महा समर एक पल मे तभी सजा डाला
पाचजण्य उठा क्रष्ण ने मुख से लगा बजा डाला
हुआ शंखनाद जैसे ही सबका गर्जन शुरु हुआ
रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ
कहा क्रष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जरा
गाण्डिव पर रख बाणो को प्रत्यंचा को खींच जरा
आज दिखा दे रणभुमि मे योद्धा की तासीर यहाँ
इस धरती पर कोई नही,अर्जुन के जैसा वीर यहाँ
सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया
एक धनुर्धारी की विद्या मानो चुहा कुतर गया
बोले पार्थ सुनो कान्हा जितने ये सम्मुख खड़े हुये है
हम तो इन से सीख सीख कर सारे भाई बड़े हुये है
इधर खड़े बाबा भिष्म ने मुझको गोद खिलाया है
गुरु द्रोण ने धनुष बाण का सारा ग्यान सिखाया है
सभी भाई पर प्यार लुटाया कुंती मात हमारी ने
कमी कोई नही छोड़ी थी,प्रभू माता गांधारी ने
ये जितने गुरुजन खड़े हुये है सभी पूजने लायक है
माना दुर्योधन दुसासन थोड़े से नालायक है
मै अपराध क्षमा करता हुँ बेशक हम ही छोटे है
ये जैसे भी है आखिर माधव,सब ताऊ के बेटे है
छोटे से भू भाग की खातिर हिंसक नही बनुंगा मै
स्वर्ण ताक कर अपने कुल का विध्वंसक नही बनुंगा मै
खून सने हाथो को होता,राज भोग अधिकार नही
परिवार मार कर गद्दी मिले तो सिंहासन स्वीकार नही
रथ पर बैठ गया अर्जुन मुह माधव से मोड़ दिया
आँखो मे आँसू भर कर गाण्डिव हाथ से छोड़ दिया
गाण्डिव हाथ से जब छुटा माधव भी कुछ अकुलाए थे
शिष्य पार्थ पर गर्व हुआ मन ही मन हर्षाए थे
मन मे सोच लिया अर्जुन की बुद्धि ना सटने दूंगा
समर भुमि मे पार्थ को कमजोर नही पड़ाने दूंगा
धर्म बचाने की खातिर इक नव अभियान शुरु हुआ
उसके बाद जगत गुरु का गीता ग्यान शुरु हुआ
एक नजर में रणभूमि के कण कण डोल गये माधव
टक टकी बांधकर देखा अर्जुन एकदम बोल गये माधव
पार्थ मुझे पहले बतलाते मै संवाद नही करता
तुम सारे भाईयो की खातिर कोई विवाद नही करता
पांचाली के तन पर लिपटी साड़ी खींच रहे थे वो
दोषी वो भी उतने ही है जबड़ा भींच रहे थे जो
घर की इज्जत तड़प रही कोई दो टूक नही बोले
पौत्र बहू को नग्न देखकर गंगा पुत्र नही खौले
तुम कायर बन कर बैठे हो ये पार्थ बडी बेशर्मी है
संबंध उन्ही से निभा रहे जो लोग यहाँ अधर्मी है
हे पांडू के पुत्र ! धरम का कैसा कर्ज उतारा है
शोले होने थे आँखो में पर बहती जल धारा है
गाण्डिव उठाने मे पार्थ जितनी भी देर यहाँ होगी
इंद्रप्रस्थ के राज भवन मे उतनी अंधेर वहाँ होगी
अधर्म धर्म की गहराई मे खुद को नाप रहा अर्जुन
अश्रूधार फिर तेज हुई और थर थर काँप रहा अर्जुन
ॐ ।।आगे सुनने के लिए संदेश भेजे।। ॐ
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