कट गये दिन मेरे मसर्रत के
याद आया मुझे ख़ुदा आख़िर..
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बेकली बेबसी ग़म-ए-दौरां
यार क्या क्या है मेरी आँखों में..
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जिसमें खुलूसों प्यार की रंगत न मिल सके
मेरी नज़र में यार वो तोहफा हराम है........
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उसके होंटों पे तबस्सुम की जो अंगड़ाई है
जान लेने को है तय्यार तुम्हें क्या मालूम.
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नहीं चाहिए मुझको सारी ख़ुदाई।।
मेरे साथ हैं आप इतना बहुत है।।
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-Haris khan