ज़रा-सा शाइर …............
इश्क़ में जलना भी, मेरे हक़ में ठहरेगा 'सवाब,
मैं, करन! सूने मज़ारों का, दिया हो जाऊँगा।
عشق میں جلنا بھی میرے حق میں ٹھہرے گا ثواب
میں کرن سونے مزاروں کا دیا ہو جاؤنگا
-کرن
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हज़ारों डूबती ख़ुशियों का, इक साहिल बनाते हैं।
सिसकती इन तमन्नाओं का, मुस्तक़बिल बनाते हैं।
ہزاروں ڈوبتی خوشیوں کا اک ساحل بناتے ہیں
سسکتی ان تمنّآؤں کا مستقبل بناتے ہیں
ग़रज़ क्या है, किसी ने तोड़ डाला गर दिल-ए-बेकस,
ज़रा 'मिट्टी उठा लाओ, नया इक दिल बनाते हैं।
غرض کیا ہے کسی نے توڑ ڈالا گر دلِ بیکس
ذرا مِٹِّی اٹھا لاؤ نیا اک دل بناتے ہیں
अलम से जूझते फिरते हैं, तन्हाई में रहते हैं,
चलो! ख़ल्वत-गुज़ारों के लिए, महफ़िल बनाते हैं।
الم سے جوجھتے پھرتے ہیں تنہائی میں رہتے ہیں
چلو خلوت گزاروں کے لئے محفل بناتے ہیں
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ये जो हँसते हैं, सिरफिरा कह कर।
सर झुकाएँगे, देवता कह कर।
یہ جو ہنستے ہیں سرپھرا کہہ کر
سر جھکائیں گے دیوتا کہہ کر
याद 'आऊँगा, इतनी शिद्दत से,
रो पड़ोगे, 'ख़ुदा-ख़ुदा कह कर।
یاد آؤں گا اتنی شدّت سے
رو پڑو گے خدا خدا کہہ کر
एक मासूम ने कहा....... रोटी,
और 'ख़ामोश हो गया, कह कर।
ایک معصوم نے کہا........ روٹی
اور خاموش ہو گیا کہہ کر
_करन
_کرن
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