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सुलभा: पुरुषा राजन सततं प्रियवादिन:।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:।।21
शूराश्च बलवन्तश्च कृतास्त्राश्च नरा रणे।
कालाभिपन्ना: सीदन्ति यथा वालुकसेतवः।।24
निवार्यमाणस्य मया हितैषिणा,
न रोचते ते वचनं निशाचर।
परान्तकाले हि गतायुषो नरा,
हितं न गृह्णन्ति सुहृद्भिरीरितम।।26
इस संसार मे आपके सामने प्रिय लगने वाली मीठी मीठी बाते बोलने वाले और आपकी झूठी और बनावटी प्रसंसा करने वाले और आपसे अपने लिए ऐसी ही बाते सुनने वाले बहुत लोग बड़ी सुगमता से मिल जाते है किंतु आपका हित साधन करने के लिए आपके सामने सीधी और सच्ची किंतु आपके लिए हितकारी और शुभ परिणाम देने वाली तीखी और कड़वी किंतु यथार्थ बात कहने बाले और आपसे ऐसी बातें सुनने वाले सच्चे सुहृद हितैषी लोग बहुत कम मिलते है आपको अधर्म और अनुचित कर्म करने से रोकना तथा आपकी बुद्धि और विवेक को परिष्कृत कर उसे धर्म विहित हितकारी यश कीर्ति पुरुषार्थ और ऐश्वर्य को बढ़ाने वाले शुभ कर्तव्यकर्मो के आचरण की ओर प्रेरित करने वाला ही आपका यथार्थ भाई बंधु मित्र और सुहृद हितैषी होता है तथापि ऐसे सुहृद भाई बंधु और सुहृद हितैषी मित्रो की कल्याणकारी बाते परामर्श और सलाह भी जब किसी को बुरी लगने लगे तब यह समझ लेना चाहिए कि उसका अंत समय उसका निकट आ गया है जीवन के अंतकाल (मृत्यु या मृत्युलुल्य कष्ट विपत्ति और नैतिक पतन का समय आ जाने पर) अहंकार अपनी पराकाष्ठा पर होता है ऐसे समय मे अपने ही भाई बंधु स्वजनो हितैषियों की हितकर बाते भी नही मानते हुए उन्हें अनदेखा या अनसुना कर मनमाने कार्य और कर्म को करते हुए बड़े बड़े शक्तिशाली ऐश्वर्य सम्पन्न सूरवीर बलबान भी ऐसे नष्ट हो जाते है जैसे बालू का पुल पहली वारिस में ढह जाता है जैसे घास तिनकों से बना घर एक चिंगारी में ध्वस्त हो जाता है ।
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण युद्धकाण्ड,सर्ग-16,श्लोक-21,24,26
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