کنار خویش نشستم، چه گفتگوی غریبی
چقدر واژه حقیر است ،هجای تازه بیاور
گلو بریده و دلخون ،شکایتی ست به جانم
به دم به نای سکوتم ،نوای تازه بیاور
آرمان بر شکاف میان آنچه «هست» و آنچه «باید» باشد تأکید میکند. تا آرمانی نداشته باشیم که در راه آن حاضر به پرداخت هزینه باشیم، هیچ تغییر عمدهای رخ نخواهد داد. آرمانگریزی صرفاً به تداوم تبعیض و ستم کمک میکند. تا تیغ آرمان، گردن واقعیت را تهدید نکند، واقعیت تغییر نخواهد کرد.
Invited by: Peyman Mansoury
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Day | Followers | Gain | % Gain |
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October 19, 2023 | 34 | +4 | +13.4% |
November 20, 2022 | 30 | +1 | +3.5% |
September 10, 2022 | 29 | +1 | +3.6% |
June 23, 2022 | 28 | -1 | -3.5% |
May 16, 2022 | 29 | +1 | +3.6% |
April 08, 2022 | 28 | +1 | +3.8% |
February 09, 2022 | 27 | +1 | +3.9% |
January 03, 2022 | 26 | +1 | +4.0% |
November 26, 2021 | 25 | +2 | +8.7% |
October 18, 2021 | 23 | +3 | +15.0% |