अभी
केवल चार वर्ष बीतने को हैं,
और लगता है मानो
चार सदियाॅं बीत गई हों,
उन चार माहों की बातचीत
और उन चार माहों में हुई
कुछ,चार घंटे और चार-चार मिनट वाली
उन चार भेटों में प्राप्त
प्रेम की प्रतीक्षा करते हुए,
और प्रतीक्षा,
जो बन गई है
मेरे सम्पूर्ण जीवन का एक संकल्प,
तो क्या ये प्रतीक्षा ही मेरे प्रेम की
और ये संकल्प ही मेरी निष्ठा का
प्रमाण है ? क्यूॅंकि,
तुम्हारे जाने के बाद,
मैंने प्रेम को,
प्रेम से अधिक,
प्रतीक्षा के रूप में जाना ।
~डिम्पल चौहान ✍️✍️