Poet to be
अंधेरों को हटा निकल सूरज आया ।
तब कहीं चेतना के मोतियों को पाया ।।
प्रकृति के संग मन विवेकी हो जाता हैं ।
विकार दूर होते सभी संजीव हो जाता हैं ।
जब हृदय ने विवेक का परचम लहराया ।
रोशन हुआ सब अंधकार जहाँ भी था छाया ।
तब कहीं चेतना के मोतियों को पाया ।।
संग्रह प्रकाशित बिल्कुल न करूँगा ।
अंधेर जब हुई चेतना ये कहूँगा।
अचेतन, अवचेतन की स्थिती थी ।
मज़बूर मन हुआ ये मेरी परिस्थिती थी ।
चरम पर आकर वो राग सुनाया ।
जिससे चैतन्य फिर शुद्धता लाया ।
तब कहीं चेतना के मोतियों को पाया ।।
अनुभव जो हुआ वही बताता हूँ ।
सत्य अवगत अवश्य करवाता हूँ ।
चेतना की कामना में धैर्य निःसंदेह रखे ।
आत्मा समर्पित परमात्मा का स्वाद चखें ।
उस निराकार ने अनोखा खेल रचाया ।
ज्ञान के समक्ष विनम्र हुई माया ।
तब कहीं चेतना के मोतियों को पाया ।।