! अपना थोड़े से गुज़ारा भी नहीं हो सकता।
और वो पूरा हमारा भी नहीं हो सकता!
! लोग पत्थर की तरह मिलते हैं
हो गया जब से आइना आक़िफ़।
! रूठा रहे ज़माना बड़े शौक से मग़र
अल्लाह मेरे तेरी रजा चाहिए मुझे!
! तू क़त्ल कर रहा है मगर ये बता मुझे
क्या पाक हो सकेगी ज़मीं मेरे खून से!
Malikzada Akif
Poet learner philosophy
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Day | Followers | Gain | % Gain |
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November 17, 2023 | 82 | -5 | -5.8% |
July 20, 2022 | 87 | +1 | +1.2% |
June 13, 2022 | 86 | -6 | -6.6% |
March 30, 2022 | 92 | -2 | -2.2% |
January 31, 2022 | 94 | -1 | -1.1% |