ਤੈਂਡਾ ਰਹਿਮ ਪਛਾਣ ਕੇ
ਮੈਂ ਨਿਸਚਾ ਕਰਿਆ,
ਰੁੱਤ ਘਾਮ ਪਰਦੇਸ ਦੀ
ਕੋਈ ਬੂਟ ਨ ਹਰਿਆ,
ਸੁੰਞਾ ਸਤਲੁਜ ਚਿਰਾਂ ਤੋਂ
ਬੇ-ਨੀਰ ਹੈ ਦਰਿਆ,
ਰੁਲਦਾ ਨਾਮ ਹਜ਼ੂਰ ਦਾ, ਕੋਈ ਵੇਸ ਨ ਸਾਡਾ,
ਤੂੰ ਬਹੁੜੀਂ ਕਲਗੀ ਵਾਲਿਆ, ਕੋਈ ਦੇਸ ਨ ਸਾਡਾ।
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