श्रीमद्भगवद्गीता on Clubhouse

श्रीमद्भगवद्गीता Clubhouse
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Updated: May 25, 2024

Description

गीता की गणना प्रस्थान-त्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। अतएव भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है, जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गौ (गाय) और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं; जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि-अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षर-पुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षर-पुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है।

महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं, तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के वास्तविक व दार्शनिक ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों संकलन “श्रीमद्भगवद्गीता” के नाम से विश्व में क्यारी प्राप्त है।

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